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बादलखोल अभयारण्य में लकड़ी तस्करों का खेल,विभागीय मिलीभगत से हरा जंगल हो रहा तबाह

  वन माफियाओं का बढ़ता दबदबा… परिक्षेत्र अधिकारी की लापरवाही या फिर अंदरूनी सांठगांठ?



नारायणपुर/जशपुरनगर,बादलखोल अभयारण्य एक बार फिर से सुर्खियों में है। बीते माह  साहीडांड़ बिट क्षेत्र में वर्षों पुराने साल वृक्षों को तस्करों ने बेरहमी से काट डाला। भारी-भरकम पेड़ों के गिरने से आसपास और वृक्ष भी टूटकर बर्बाद हो गए। इतना बड़ा घटनाक्रम घटित हो गया और वन विभाग को इसकी भनक तक नहीं लगी, यह महज लापरवाही है या फिर अंदरूनी मिलीभगत, बड़ा सवाल यही है।

सूत्रों के मुताबिक तस्करों ने आधुनिक  मशीन से पूरी कार्रवाई को अंजाम दिया। रात भर चली कटाई की भनक तक परिक्षेत्र अधिकारी या उनके अधीनस्थ स्टाफ को नहीं लगी। जबकि इस इलाके में लगातार अवैध कटान और तस्करी की घटनाएं सामने आती रही हैं।

विभाग की भूमिका पर उठे सवाल

घटना ने सीधे-सीधे वन परिक्षेत्र अधिकारी के कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। स्थानीय लोगों का कहना है कि बिना विभागीय मिलीभगत के इतने बड़े पैमाने पर कटाई संभव नहीं।हालांकि विभाग का दावा है कि "तस्करों की पतासाजी की जा रही है", लेकिन अब तक किसी बड़े आरोपी तक पहुंच नहीं सकी है। यही वजह है कि विभाग की जवाबदेही और पारदर्शिता पर लगातार प्रश्नचिह्न लग रहे हैं।

 इस पूरे मामले में पर्यावरण प्रेमियों ने गंभीर सवाल उठाया है उनका मानना है कि वन विभाग की मिलीभगत के बिना इतने बड़े पैमाने पर कटाई संभव है।परिक्षेत्र अधिकारी और और उनके अधीनस्थ आखिर किसे बचा रहे हैं,लगातार हो रही घटनाओं के बावजूद निगरानी और गश्ती क्यों नाकाम है,क्या भ्रष्टाचार की जड़ें विभाग के भीतर तक फैली हुई हैं?

बता दे कि,बादलखोल अभयारण्य की ताज़ा घटना ने वन विभाग की साख और पारदर्शिता दोनों पर गंभीर प्रश्नचिह्न खड़े कर दिए हैं। हरे-भरे जंगल तस्करों के लिए कब तक खुले बाजार बने रहेंगे।अगर उच्च अधिकारी तत्काल कठोर कदम नहीं उठाते, दोषियों पर कार्रवाई नहीं होती और मिलीभगत की जांच नहीं की जाती, तो यह अभयारण्य आने वाले समय में केवल कागज़ों और सरकारी फाइलों में ही सुरक्षित रह जाएगा।

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